पराली प्रबंधन के लिए खर्च होंगे 1700 करोड़,किसानों को 50% कम दाम पर मिलेगी मशीन
पराली प्रबंधन के लिए खर्च होंगे 1700 करोड़,किसानों को 50% कम दाम पर मिलेगी मशीन. पहले बारिश की कमी से सूखे का प्रकोप झेलने वाले महाराष्ट्र के किसान अब बेमौसम बारिश की मार झेल रहे है । सितंबर अक्टूबर में अक्सर किसान की फसल पककर तैयार हो जाती है । यदि ऐसे में मौसम की बेरुखी उसे बहा ले जाए तो किसानों की उम्मीदों पर पानी फिर जाता है । ऐसा ही हुआ है महाराष्ट्र में जहां उस्मानाबाद, नांदेड़ , वर्धा जैसे कई जिलों में इस समय खरीफ की सोयाबीन बाजरा उड़द कपास ज्वार और मूंग की फसल बेमौसम बारिश के चलते पूरी तरह बर्बाद हो गई है ।

पराली प्रबंधन – अगर पराली जलाई तो जमीन पर लगेगा लाल निशान
सोयाबीन की फसल खेत में ही सड़ने लगी उसमें अंकुरण होने लगा जिसकी वजह से किसान बहुत ज्यादा परेशान हैं । कुछ किसान ऐसे हैं जो कह रहे थे कि इस बार फसल बेचकर अपना कर्ज उतार ही देंगे वो अब गहरी निराशा में डूब गए हैं । कुदरत उनके साथ दो साल से लगातार मजाक कर रही है । पिछले साल भी महाराष्ट्र के 325 तालुका में कई हेक्टेयर में सोयाबीन, ज्वार , तूर , कपास, बाजरा और धान जैसे फसलों को नुकसान पहुंचा था । आपको बता दें कि महाराष्ट्र में सोयाबीन ,बाजरा , उड़द और कपास आदि के अलावा उन्हें सांगली और नासिक में अंगूर की अगेती फसल में भी भारी नुकसान हुआ है ।
पंजाब , हरियाणा यूपी और राजस्थान के कुछ हिस्सों में इन दिनों धान की कटाई का काम चल रहा है । ऐसे में कई जगह पराली जलाने भी शुरू हो गई है । इसी से बचने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा पराली प्रबंधन के लिए 17 सौ करोड़ रुपये की धनराशि राज्यों को आवंटित की गई है । सहकारी समितियों को 80 प्रतिशत और पराली जलाने के कारण होने वाले वायु प्रदूषण को रोकने के लिए मशीनरी पर लोगों को 50 फीसदी तक की सब्सिडी दी जा रही है ।
इन चारों राज्यों में हॉट स्पॉट की पहचान भी की गई है जिन पर राज्य सरकारों को अधिक ध्यान देने के निर्देश भी दिए गए हैं जिससे बाहरी प्रदूषण को कम किया जा सके । दिल्ली एनसीआर में सीपीसीबी की 50 टीमों को तैनात भी किया जाएगा । पराली प्रबंधन
पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि पूसा माइक्रोबियल कंपोजर कैप्सूल का परीक्षण जून से दिल्ली एनसीआर में चल रहा है । दिल्ली में 800 हेक्टेयर के लिए इसका उपयोग किया जाएगा । वही उत्तर प्रदेश में भी इस साल करीब 10 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में इस तकनीक का उपयोग किया जाएगा । हालांकि प्रकाश जावड़ेकर ने यहां ये भी माना है कि इस मौसम में सिर्फ पराली ही प्रदूषण के लिए जिम्मेदार नहीं है इसके जिम्मेदार दूसरे कारकों पर भी काम किया जा रहा है.
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